जोनाई निज संवाददाता, 19 मार्च :----- *कीर्ति सुवास* स्थानीय जनमानस में मारवाड़ी समाज के बारे में एक इतिवाचक सोच स्थापना की परिकल...
जोनाई निज संवाददाता, 19 मार्च :-----
*कीर्ति सुवास* स्थानीय जनमानस में मारवाड़ी समाज के बारे में एक इतिवाचक सोच स्थापना की परिकल्पना की उपज का नाम है। असम वासी 37 मारवाड़ी कीर्ति पुरुषों की जीवन परिक्रमा पर आधारित उनकी विशेषता, उनका सामाजिक योगदान, स्थानीय समाज संस्कृत में उनकी अवस्थिति से केवल स्थानीय बुद्धिजीवी -जातीय नेता वरण अपने नव प्रजन्म को भी अवगत कराने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से एक ग्रंथ श्रृंखला प्रकाशन का मानस तैयार किया गया इसी श्रृंखला की चौथी पुस्तक का 17 मार्च को उत्तर लखीमपुर साहित्य सभा भवन में विमोचन किया गया। उत्तर लखीमपुर साहित्य सभा भवन में एक साहित्यमय परिवेश में उमेंश खंडेलिया द्वारा संपादित कीर्ति सुवास का विमोचन असमिया साहित्य व शिक्षा क्षेत्र की एक विशिष्ट पहचान डॉक्टर मुकुंद राजवंशी के संचालन में अनुष्ठीत विमोचन समारोह में न केवल असम वरन राष्ट्रीय स्तर के अनुवाद साहित्य सेवी के रूप में प्रतिष्ठित साहित्य पेंशनर देवी प्रसाद जी बागड़ोदिया द्वारा किया इसके पूर्व लखीमपुर प्रमुख साहित्यकार व शिक्षाविद, राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर अमीया राजवंशी ने दीप प्रज्ज्वलित करके समारोह का उद्घाटन किया, मंडलीय समिति (ग)के अध्यक्ष छतर सिंह गिरिया, उत्तर लखीमपुर साहित्य सभा के साहित्य प्रकाशन कोष की सचिव डॉक्टर बंटी गोगोई के सम्बोधन के पश्चात ग्रंथ संपादक उमेश खंडेलिया ने अपने विचार रखें ।
विमोचन कर्ता बागड़ोदिया ने अपने वक्तव्य में मारवाड़ीयों की सहिष्णुता, ईमानदारी, धर्म परायणता, समाज कल्याण की भावना के विपरीत आंदोलन व सरकारी - राजनीतिक नीतियों के चलते मारवाड़ीयों को स्वार्थी, पैसा कमाने की मशीन, संस्कृति विहिन आदि के रूप में पेश किया जाने लगा है जो अनुचित है।
उन्होंने कहा मारवाड़ी अपने संस्कारी प्रवृत्ति के कारण मारवाड़ी जहाँ जाता है वही का होकर समाज- संस्कृति को अपनाते हुए हर सुख दुःख का भागी हो जाता है। चंदा या आर्थिक सहयोग करता है परन्तु उस कार्य में शरीक नहीं होता इसी कमजोरी के कारण स्वार्थी तत्वों को मौका मिल जाता है।
सभा के संचालक डा राजवंशी ने अपने संबोधन में असम को गौरवान्वित करने वाले अपने कुछ मारवाड़ी परिचितों का जिक्र करते हुए तेजपुर गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी, गुवाहाटी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र, प्रख्यात संयुक्त राष्ट्र की केल्लग इन्सट्युट आफ मेनेजमेंट की पूर्व डीन, डा दिपक जैन का उल्लेख करते हुए कहा कि आज का मारवाड़ी केवल व्यवसायी नहीं वरन हर क्षेत्र में आपनी पहचान छोड़ने वाला समाज कहलाने लगा है।
उन्होंने कीर्ति सुवास को एक क्रांतिकारी प्रयास बताते हुए कहा कि इसके जरिये असमीया बौद्धिक वर्ग को मारवाड़ीयों को और करिव से जानने का मौका मीलेगा।
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